जैव प्रक्रम: पोषण – कक्षा 10 वीं जीव विज्ञान अध्याय 1 notes pdf in hindi
जैव प्रक्रम: पोषण (जीवन प्रक्रिया: पोषण) – कक्षा 10 वीं जीव विज्ञान अध्याय 1 Notes PDF
Class 10th Biology Chapter 1 Handwritten Notes PDF 👇 Scroll down
CLASS 10th Biology (जीव विज्ञान)
जैव प्रक्रम Biological Process
*जैवप्रक्रम से आप क्या समझते हैं?
:- एक विशेष प्रक्रिया है जो वांछित वस्तुएं प्राप्त करने के लिए संपूर्ण जीवित कोशिकाओं या उनके खंडों (जैसे, सूक्ष्म जीव, रसायन, क्लोरोप्लास्ट) का उपयोग करती है। जीवन शक्ति और द्रव्यमान का परिवहन अनेक जैविक और प्राकृतिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है।
*सजीव से आप क्या समझते हैं?
वह प्रत्येक वस्तु जिसमें जीवन है, सजीव वस्तु कहलाती है|
उदाहरण:- जीव जन्तु, पेड़ पौधे, इंसान आदि|
*निर्जीव से आप क्या समझते हैं?
:- वह प्रत्येक वस्तु, जिसमें जीवन नहीं है, निर्जीव वस्तु कहलाती है।
उदाहरण:- लोहा, मिट्टी, रेत, घर आदि|
*सजीव के प्रमुख लक्षण को लिखे?
(1) सजीव वृद्धि करते हैं।
(2) सजीव गति करते हैं।
(3) सजीवों को भोजन की जरूरत होती है।
(4) ये बाहरी उत्तेजनाओं के प्रति संवेदनशील होती हैं।
*पोषण से आप क्या समझते हैं?
:- आपके शरीर की जरूरतों के अनुसार आपके द्वारा लिए जाने वाले आहार की मात्रा और प्रकार है।
जैसे कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, खनिज, लवण और जल
#पोषण दो प्रकार के होते हैं,
1.स्वपोषी पोषण और 2.परपोषी पोषण।
*स्वपोषी पोषण और परपोषी पोषण में क्या अंतर है?
:- स्वपोषी में पोषण का तरीका यह है कि वे उत्पादक (Producers) हैं और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के साथ सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन तैयार करते हैं|
जबकि परपोषी या हेटरोट्रॉफ़ में पोषण का तरीका यह है कि वे उपभोक्ता (Consumers) हैं जो अपने भोजन के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं|
*प्रकाश संश्लेषण से आप क्या समझते हैं?
:- हरे पौधे पानी और कार्बन-डाइऑक्साइड का उपयोग करके प्रकाश की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट के रूप में अपना भोजन बनाने में सक्षम होते हैं, इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है।
*क्लोरोफिल क्या है
:- क्लोरोफिल एक वर्णक है जो पौधों को हरा रंग देता है, और यह प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पौधों को अपना भोजन बनाने में मदद करता है।
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*प्रकाश संश्लेषण के लिए co2 आवश्यक है कैसे?
:-प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में CO2 का अवशोषण करके जल की सहायता से कार्बोहाइड्रेट का निर्माण किया जाता है अर्थात प्रकाश-संश्लेषण CO2 के बिना संभव नहीं है और यह भोजन निर्माण के लिए आवश्यक है।
*प्रकाश संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है कैसे?
:-पत्ती का आंतरिक भाग जो मूल रूप से हरा था (जिसमें क्लोरोफिल होता है) आयोडीन घोल डालने पर नीला-काला हो जाता है, जिससे पता चलता है कि पत्ती के इस आंतरिक भाग में स्टार्च मौजूद है। इसलिए प्रकाश संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल आवश्यक है|
*अमीबा में पोषण का वर्णन करें?
:-अमीबा में पोषण की विधि को होलोज़ोइक पोषण के रूप में जाना जाता है। फागोसाइटोसिस वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक अमीबा अपने पर्यावरण से भोजन प्राप्त करता है। फागोसाइटोसिस नामक एक तंत्र, जिसमें संपूर्ण जीव वह भोजन खाता है जिसे वह उपभोग करना चाहता है, अमीबा को अपने पर्यावरण से पोषक तत्व प्राप्त करने की अनुमति देता है।
*जंतुओं में पोषण कितने चरण में संपन्न होता है वर्णन करें?
:- जंतुओं में पोषण के पाँच चरण होते हैं, जिनमें पोषण की संपूर्ण क्रिया होती है (i) अंतर्ग्रहण, (ii) पाचन, (iii) अवशोषण, (iv) स्वांगीकरण, (v) बहिःक्षेपण।
*मनुष्य के आहार नाल या पाचन तंत्र का सचित्र वर्णन करें?
:-मुख की आहार नाल👇
मुख से लेकर गुदा तक फैली आहार नाल लगभग 8 से 10 मीटर लम्बी होती है। इसे निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
(i) मुख एवं मुख गुहिका -मुखगुहा में जिह्वा स्थित होती है। यह भोजन में लार मिलाने तथा भोजन को निगलने में सहायता करती है। मनुष्य के दोनों जबड़ों पर गर्तदन्ती, विषमदन्ती तथा द्विबारदन्ती प्रकार के दाँत लगे होते हैं। मुखगुहा में लार ग्रन्थियां नलिकाओं के द्वारा खुलती हैं। इनसे लार स्रावित होती है। लार में श्लेष्म, लाइसोजाइम तथा टायलिन एन्जाइम पाया जाता है।
(ii) ग्रसनी -यह मुखग्रासन गुहिका का पश्च छोटा भाग है। यह घाँटी द्वार या ग्लॉटिस द्वारा श्वासनली में और ग्रसिका या गलेट द्वारा ग्रासनली में खुलता है।
(iii) ग्रासनली या ग्रसिका -यह पतली तथा लम्बी नलिका है जो डायफ्राम को भेदकर उदर गुहा में प्रवेश करके आमाशय में खुलती है।
(iv) आमाशय -यह आहार नाल का सबसे चौड़ा भाग है। आमाशय तथा ग्रासनली के बीच जठरागमी अवरोधनी या कार्डियक अवरोधनी ग्रसनी होती है जो भोजन को वापस ग्रसिका में जाने से रोकता है। आमाशय को तीन भागों में बाँटा जाता है सबसे ऊपरी भाग को जठरागमी या कार्डियक भाग, मध्य का मध्य भाग या फन्डिक भाग तथा अन्त में जठरनिर्गमी या पाइलोरिक भाग।
(v) छोटी आंत्र -यह आहार नाल का संकरा तथा लम्बा भाग होता है। मनुष्य में छोटी आंत्र लगभग 6.5 मीटर लम्बी होती है। जिस स्थान पर आमाशय छोटी-आंत्र में खुलती है वहाँ जठरनिर्गमी अवरोधनी .यो पाइलोरिक अवरोधनी पाई जाती है। छोटी आंत्र को तीन भागों में बाँटा जाता है-सबसे पहला भाग जो आमाशय के साथ U का आकार बनाता है, उसे ग्रहणी या ड्योडिनम कहते हैं, मध्य का भागं मध्यांत्र या जेजूनम तथा अन्तिम भाग शेषांत्र या इलियम कहलाता है। पाचन मुख्यतः ग्रहणी में होता है तथा अवशोषण मुख्यत: इलियम में होता है।
(vi) बड़ी आंत्र -यह आहार नाल का अन्तिम भाग है। छोटी आंत्र तथा बड़ी आंत्र के सन्धि स्थल पर एक शेषांत्र-उण्डुकीय कपाट या इलियोसीकल वाल्व होता है। बड़ी आंत्र को तीन भागों में बाँटा जा सकता है। पहला भाग उण्डुक या सीकम होता है। इससे एक अन्धनाल जुड़ी रहती है जिसे कृमिरूप परिशेषिका या वर्मिफॉर्म एपेन्डिक्स कहते हैं। मनुष्य में कृमिरूप परिशेषिका अवशेषी अंग के रूप में होती है। दूसरा भाग वृहदांत्र या कोलन होता है। कोलन स्थान-स्थान से फूला रहता है, इन फूले हुए भागों को हॉस्ट्रा कहते हैं। कोलन के चार भाग होते हैं-आरोही कोलन, अनुप्रस्थ कोलन, अवरोही कोलन तथा पेल्विक कोलना बड़ी आंत्र का अन्तिम भाग मलाशय या रेक्टम होता है। मलाशय का अन्तिम भाग गुदा नाल कहलाता है। यह नाल गुदा द्वारा बाहर खुलती है।
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